Saturday, April 27"खबर जो असर करे"

340 कमरे वाले राष्ट्रपति भवन के गेस्ट हाउस में रहेगा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का आवास, जानिए क्‍या है इसकी वजह

नई दिल्‍ली । द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) देश की पहली ऐसी राष्ट्रपति (President) हैं, जिन्होंने आजाद भारत (India) में जन्म लिया। उनसे पहले जितने भी राष्ट्रपति रहे, उनका जन्म देश की आजादी से पहले हुआ था। 64 साल की उम्र में राष्ट्रपति पद पर बैठने वाली मुर्मू सबसे कम उम्र की प्रेसिडेंट हैं। संथाल आदिवासी समाज (Santhal Tribal Society) में पैदा हुईं बेहद गरीब परिवार में पलने वाली द्रौपदी मुर्मू अब मैडम President कहलाएंगी।

एक महिला के लिए सफलता के शिखर तक पहुंचने का संघर्ष बहुत मुश्किल होता है. उसे जीवन में हर स्तर पर लड़ना पड़ता है. उसे सामाजिक परंपराओं के बंधन तोड़ने होते हैं, उसे समाज की महिला विरोधी सोच से लड़ना होता है. उसे परिवार की उन बेड़ियों को तोड़ना होता है, जो बचपन से ही उसकी उड़ान रोकने के लिए बांधी जाती हैं. और इस सबके बावजूद अगर कोई महिला उच्च पद पर पहुंचती है तो कई बार पूरी व्यवस्था उसे पीछे खींचने के प्रयास में लग जाती है.

सोचिए, एक आदिवासी महिला ने एक छोटे से गांव से संघर्षों की शुरुआत की और आज वो देश की राष्ट्रपति हैं.

जब एक आदिवासी महिला, जिसे जीवन में कुछ भी आसानी से नहीं मिला. वो जब देश के राष्ट्रपति बनती हैं तो वो पूरे समाज के लिए प्रेरणा बन जाती है. द्रौपदी मुर्मू ने 15वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेने के बाद अपने संबोधन में 4 ऐसी बातें कहीं जो आपको उम्मीद प्रेरणा और शक्ति से भर देंगी.

1. मैंने अपनी जीवन यात्रा ओडिशा के एक छोटे से आदिवासी गाँव से शुरू की थी. मैं जिस पृष्ठभूमि से आती हूँ, वहां मेरे लिये प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करना भी एक सपने जैसा ही था. लेकिन अनेक बाधाओं के बावजूद मेरा संकल्प दृढ़ रहा और मैं कॉलेज जाने वाली अपने गांव की पहली बेटी बनी.

2. मैं जनजातीय समाज से हूँ, और वार्ड कौन्सिलर से लेकर भारत की राष्ट्रपति बनने तक का अवसर मुझे मिला है. यह लोकतंत्र की जननी भारत वर्ष की महानता है. ये हमारे लोकतंत्र की ही शक्ति है कि उसमें एक गरीब घर में पैदा हुई बेटी, दूर-सुदूर आदिवासी क्षेत्र में पैदा हुई बेटी, भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंच सकती है.

3. राष्ट्रपति के पद तक पहुँचना, मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, ये भारत के प्रत्येक गरीब की उपलब्धि है. मेरा निर्वाचन इस बात का सबूत है कि भारत में गरीब सपने देख भी सकता है और उन्हें पूरा भी कर सकता है.

4. ये मेरे लिए संतोष की बात है कि जो सदियों तक वंचित रहे, जो विकास के लाभ से दूर रहे, वो गरीब, पिछड़े , दलित और आदिवासी मुझे ही अपना प्रतिबिंब देख सकते हैं. मेरे इस निर्वाचन में में गरीब का आशीर्वाद शामिल है बेटियों के सपन की झलक है.

मयूरभंज से राष्ट्रपति भवन तक का सफर
द्रौपदी मुर्मू, ओडिशा के मयूरभंज जिले में एक छोटे से गांव उपरबेड़ा की रहने वाली हैं. वहां उनका जो घर है, उसकी छत खपरैल की बनी हुई है. कच्ची छत के उस मकान में गिने चुने कमरे हैं. जिसमें द्रौपदी मुर्मू के परिवार के कुछ लोग आज भी रहते हैं. द्रौपदी मुर्मू ने कच्ची छत के 4 कमरे वाले उस मकान से 340 कमरों वाले राष्ट्रपति भवन तक का सफर तय किया है. आज उनका नया पता रायसीना हिल्स है. हम आपको इस नए घर से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें बताते हैं.

द्रौपदी मुर्मू के नए घर राष्ट्रपति भवन में 340 कमरे हैं. ये दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा राष्ट्रपति भवन है पहले नंबर पर है इटली का राष्ट्रपति भवन. राष्ट्रपति भवन वर्ष 1912 से बनना शुरू हुआ था. इसको बनने में 17 साल लगे.

भारत के राष्ट्रपति भवन में एक दरबार हॉल है, जहां एक कुर्सी है जिस पर राष्ट्रपति बैठते हैं. इस कुर्सी की लोकेशन से जुड़ी एक दिलचस्प बात ये है कि इससे अगर एक सीधी लकीर खींची जाए तो ये राजपथ होते हुए दूसरे छोर पर इंडिया गेट के बीचों बीच जाकर मिलती है. इसी दरबार हॉल में राजकीय समारोह और पुरस्कार वितरण जैसे कार्यक्रम होते हैं.

राष्ट्रपति भवन के खंभों में घंटियों का डिजाइन बना है. इसे डेली ऑर्डर कहा जाता है. ब्रिटिश हुकूमत का मानना था कि अगर ये घंटियां स्थिर रहें तो सत्ता लंबे वक्त तक चलेगी. हलांकि ऐसा नहीं हो पाया था. भवन बनने के बाद से हुकूमत कमजोर होती चली गई थी.

विदेशों से आने वाले राष्ट्राध्यक्ष नॉर्थ ड्राइंग रूम में राष्ट्रपति से मिलते हैं. इस कमरे में देश के पूर्व राष्ट्रपतियों की तस्वीरें भी लगी हुई हैं.

राष्ट्रपति भवन में दो अनोखे ड्रॉइंग रूम हैं, इन्हें Yellow और Grey ड्रॉइंग रूम कहा जाता है. Yellow रूम में छोटे राजकीय समारोह होते हैं और Grey ड्रॉइंग रूम में अतिथियों का स्वागत किया जाता है.

राष्ट्रपति भवन में होने वाले बड़े समारोह अशोक हॉल में किए जाते हैं. इस हॉल में जो कालीन बिछा हुआ है उसे 500 कारीगरों ने बनाया था. अशोक हॉल की छत पर देश ही नहीं, विदेशी सम्राटों से जुड़ी चित्रकारी की गई है.

राष्ट्रपति भवन का मुगल गार्डन आम लोगों के भी आकर्षण का केंद्र रहता है. 15 एकड़ में फैले मुगल गार्डन में वर्ष 1928 से ही पौधे लगाने का काम चल रहा है. यहां के फूलों के नाम भी देश विदेश के प्रसिद्ध लोगों के नाम पर रखे गए हैं. ऐसी विशेषताओं वाला राष्ट्रपति भवन अब द्रौपदी मुर्मू का नया घर है.

गेस्ट रूम में रहेंगी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू
कभी आपने सोचा है कि 340 कमरों के मकान में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू किस कमरे में रहेंगी? आम नागरिकों की सोच यही है कि द्रौपदी मुर्मू के लिए राष्ट्रपति भवन का सबसे बड़ा और विशेष कमरा चुना गया होगा. लेकिन आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि 340 कमरों और विशाल परिसर वाले राष्ट्रपति भवन में द्रौपदी मुर्मू एक Guest Room में रहेंगी. अगले 5 साल द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति भवन के गेस्ट रूम रहकर अपना कार्यकाल पूरा करेंगी.

देश के राष्ट्रपति का राष्ट्रपति भवन के गेस्ट हाउस में रहना एक परंपरा है और ये सिलसिला बहुत लंबे समय से चला आ रहा है आजादी से पहले राष्ट्रपति भवन को वायसरॉय हाउस कहा जाता था.

15 अगस्त 1947 के बाद इसका नाम बदल राजभवन कर दिया गया था. इस राजभवन में रहने वाले पहले व्यक्ति थे देश के पहले गवर्नर जनरल सी. राजगोपालाचारी.

राजगोपालाचारी बहुत विनम्र और ज़मीन से जुड़े हुए व्यक्ति थे इसलिए उन्हें वायसराय का भव्य राजसी कमरा रास नहीं आया. तब उन्होंने गेस्ट हाउस के कमरे को रहने के लिए चुना था. इसे Family wing कहा जाता है.

26 जनवरी 1950 को डॉ.राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति बने. उन्हीं के कार्यकाल में राजभवन का नाम बदलकर राष्ट्रपति भवन हो गया. राष्ट्रपति भवन में जिस कमरे में राजगोपालाचारी रहते थे, डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने भी उसी कमरे में रहने का फैसला किया. तब से लेकर अब तक देश के सभी राष्ट्रपति इसी परंपरा को निभा रहे हैं.

दूसरे देशों के राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण से जुड़ी कुछ रोचक बातें
भारत में नए राष्ट्रपति का स्वागत 21 तोपों की सलामी के साथ होता है. देश के मुख्य न्यायाधीश संसद के सेंट्रल हॉल में नए राष्ट्रपति को पद की शपथ दिलवाते हैं. उसके बाद नए राष्ट्रपति को 21 तोपों की सलामी दी जाती है. ये परंपरा कई दशकों से निभाई जा रही है. आज आपको भारत ही नहीं कई देशों में राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण से जुड़ी कुछ रोचक बातें बताते हैं

जैसे तंजानिया में राष्ट्रपति जब शपथ लेता है तो उसे भाला और ढाल दी जाती है. वर्ष 1961 में ब्रिटेन से आजादी मिलने के बाद से ही ये परंपरा चल रही है. तंजानिया में भाले और ढाल को नेतृत्व और सैन्य क्षमता का प्रतीक माना जाता है. ये वहां की मसाई जनजाति का हथियार भी है.

इंडोनेशिया में राष्ट्रपति जब शपथ लेते हैं तो उनके सिर के पास एक धार्मिक पुस्तक रखी जाती है. इस पुस्तक की छाया में राष्ट्रपति को शपथ लेनी होती है. ये पुस्तक नए राष्ट्रपति के धर्म से जुड़ी होती है.

फिलीपीन्स में भी राष्ट्रपति पद की शपथ अनोखे ढंग से ली जाती है. यहां पर राष्ट्रपति को शपथ के लिए Pineapple यानी अनानास के फाइबर से बनी शर्ट पहननी होती है. इस परंपरागत शर्ट को Barong Tagalog (बैरोंग टागालोग) कहा जाता है.

रूस में राष्ट्रपति को शपथ के बाद सोने की एक खास चेन दी जाती है. शपथ के दौरान संविधान की कॉपी और President Chain of Office मंच पर रखी जाती है. नया राष्ट्रपति संविधान की कॉपी पर हाथ रखकर शपथ लेता है.

फ्रांस में राष्ट्रपति पद की शपथ नहीं ली जाती है. वहां पर जीत के ऐलान के साथ ही राष्ट्रपति बन जाते हैं. हालांकि राष्ट्रपति बनने के बाद कई तरह के सामाजिक आयोजन होते है, जिसमें शामिल होना होता है. वहां पर नए राष्ट्रपति को जीत के बाद सोने से बना Grand Collar of the legion of honor दिया जाता है.

अमेरिका में राष्ट्रपति पद की शपथ बाइबिल लेकर ली जाती है. राष्ट्रपति पद की शपथ वाले दिन को Inauguration Day कहा जाता है.

राष्ट्रपति के पास होती हैं कौन सी शक्तियां?
भारत का राष्ट्रपति देश की सियासी और सैन्य दोनों शक्तियों से संबंध रखता है. तीनों सेनाओं का कमांडर इन चीफ भी देश का राष्ट्रपति ही होता है. देश की नई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू संसद के लिए मैडम प्रेसिडेंट हैं, तो तीनों सेनाओं के लिए मैडम सर.

वैसे हमारे देश में राष्ट्रपति पद को रबर स्टैंप कह दिया जाता है. दरअसल इसके पीछे वजह ये है कि भारतीय संविधान में राष्ट्रपति की शक्तियां सीमित हैं. लेकिन ये इतनी भी सीमित नहीं हैं कि इन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया जाए या इनकी गरिमा को हल्के में लिया जाए.

देश की संसद से पास हुआ कोई भी बिल, तब तक कानून नहीं बनता, जब तक राष्ट्रपति उस पर हस्ताक्षर नहीं करते. राष्ट्रपति अपने चुने गए 12 उम्मीदवारों को राज्यसभा भी भेज सकते हैं. इन्हें नामित सदस्य कहा जाता है.

संसद से पास हुए Money Bill के अलावा राष्ट्रपति किसी भी बिल को पुनर्विचार के लिए भेज सकते हैं. इसे राष्ट्रपति के कड़े संदेश के तौर पर देखा जाता है. हालांकि दोबारा वही बिल भेजने पर राष्ट्रपति को हस्ताक्षर करने ही होते हैं.

देश के प्रधानमंत्री को पद की शपथ दिलाने का अधिकार राष्ट्रपति के पास है. मुख्य न्यायाधीश को भी राष्ट्रपति ही शपथ दिलाते हैं. किसी भी अपराधी की मौत की सज़ा को माफ करने का एकमात्र अधिकार राष्ट्रपति के पास है.

पुरुषों के मुकाबले ज्यादा मुश्किलें झेलती हैं महिलाएं
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का भारत के शीर्ष पद पर पहुंचना आसान नहीं था क्योंकि भारत ही नहीं, आज दुनिया के किसी भी कोने में महिलाओं के लिए सत्ता के शीर्ष तक पहुंचना आसान नहीं है महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले ज़्यादा मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं, ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है ये बातें केवल भारत के संदर्भ में ही लागू नहीं होतीं, पूरी दुनिया के यही हालात हैं.

Pew Research center की एक स्टडी के मुताबिक, 1950 के बाद के वर्षों में मंगोलिया पहला देश था जिसका नेतृत्व एक महिला के हाथों में था. इसके बाद 1966 में इंदिरा गांधी पूरी दुनिया में दूसरी ऐसी महिला थीं जो भारत जैसे बड़े देश की प्रधानमंत्री बनी थीं. 1991 तक दुनिया में ऐसे 20 देश हो चुके थे जिसका नेतृत्व कभी न कभी किसी महिला ने कियाय. इसके बाद 2021 तक दुनिया में कुल 70 ऐसे देश हुए जिनका नेतृत्व कभी न कभी किसी महिला के हाथों में रहा.

इनमें से बांग्लादेश ऐसा देश है जहां पिछले 50 वर्ष में सबसे लंबे समय तक महिला नेतृत्व रहा है. लेकिन दुनिया के दूसरे देशों की सत्ता में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम रही है और उनकी संख्या भी बहुत धीरे बढ़ी है.

UN की 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के केवल 24 देशों में ही महिलाएं राष्ट्र अध्यक्ष के पद पर रही थीं और इसमें भी सिर्फ 10 महिलाएं राष्ट्र प्रमुख यानी Head of State के पद पर थीं जबकि 13 महिलाएं उस देश की सरकार की प्रमुख यानी प्रधानमंत्री जैसे पद पर थीं.

अगर दुनिया के देशों के कैबिनेट में महिलाओं की भागीदारी की बात की जाए तो कैबिनेट के अंदर सिर्फ 21 प्रतिशत महिलाएं ही मौजूद थीं

और दुनिया में सिर्फ 14 ऐसे देश थे जहां की कैबिनेट यानी सरकार चलाने वाले सिस्टम में महिलाओं की संख्या 50 प्रतिशत या उससे ज़्यादा थी.

सत्ता में भागीदारी की बात की जाए तो दुनिया भर के देशों की संसद में 2021 तक औसतन सिर्फ 25 प्रतिशत महिलाएं ही मौजूद थीं और सिर्फ 4 ऐसे देश थे, जहां की संसद में महिलाओं की संख्या 50% यानी आधी या आधी से अधिक थी आप ये जानकर हैरान होंगे कि वो चार देश रवांडा, क्यूबा, बोलिविया और UAE थे जहां की संसद में 50% से अधिक महिलाएं थीं. और अगर दुनिया इसी दर से सत्ता में gender equality के लक्ष्य की ओर बढ़े तो बराबरी की हिस्सेदारी तक पहुंचने में 130 वर्ष लग सकते हैं.

वैसे देखा जाए तो महिलाओं के मामले में भारतीय उपमहाद्वीप बाकियों से काफी बेहतर रहा है. भारत हो या बांग्लादेश, श्रीलंका हो या पाकिस्तान इन सभी देशों में महिलाएं प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति पद पर रही हैं.

अब द्रौपदी मुर्मू की शपथ का सार आपको ब्लैक एंड व्हाइट में समझाते हैं
द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना. देश के करीब 10 प्रतिशत आदिवासी समुदाय को एक पहचान और सम्मान मिलने जैसा है. ये आदिवासी समुदाय को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की बड़ी कोशिश है. ये उन लोगों के अंदर उत्साह के संचार जैसा है, जो सपने देखते हैं, लेकिन आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं कर पाते. द्रौपदी मुर्मू जब राष्ट्रपति पद की शपथ ले रही थीं, तब पूरा देश .. भारत के लोकतंत्र की खूबसूरती को निहार रहा था.

ये भारत में ही मुमकिन है कि आदिवासी समाज का कोई व्यक्ति देश के सर्वोच्च पद पर बैठ सके. भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और अमेरिका दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र. आपको जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका में आजतक कोई भी महिला राष्ट्रपति पद पर नहीं रही.

द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना ये बताता है कि कमजोर व्यक्ति के लिए मेहनत की उसका हथियार है. उसके लिए सही समय पर सही जगह होना जरूरी है. और इसके लिए उसे कभी हार न मानने वाली मानसिकता को अपनाना होगा. सोचिए परिवार के साथ हुई त्रासदी के बाद अगर द्रौपदी मुर्मू डिप्रेशन में जाकर हार मान लेतीं, तो क्या वो आज देश की राष्ट्रपति बन पातीं? काबिलियत के साथ-साथ कभी हार ना मानने वाली मजबूत मानसिकता सफलता की कुंजी है.

द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने में बहुत से लोगों को राजनीति दिखाई दे दी रही है.. सियासी समीकरण दिखाई दे रहे हैं. अगर ये राजनीति है भी तो भी ये समाज में सबसे नीचे खड़े व्यक्ति को आगे बढ़ाने वाली Progressive यानी आगे बढ़ाने वाली राजनीति है. शायद इसीलिए राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू के समर्थन में विपक्ष के भी कई नेताओं ने वोट किया. ये क्रॉस वोटिंग बताती है कि जब राजनीति में देश के पिछड़ों को आगे लाने की कोशिश होती है, तो पक्ष विपक्ष का कोई अर्थ नहीं रह जाता यही भारत की ताकत है.