Saturday, April 27"खबर जो असर करे"

मोदी की रैली में जयंत के साथ रहेंगे ‘राम’

– डॉ. प्रभात ओझा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लोकसभा चुनाव के पहले चरण में अपने प्रचार अभियान की शुरुआत मेरठ से करने जा रहे हैं। पहले ही ध्यान रखना होगा कि मोदी ने 2019 में और उसके पहले 2014 में भी इसी धरती पर पहली चुनावी रैली को संबोधित किया था। पिछली बार यह रैली 28 मार्च को हुई थी, तो इस बार 30 को होने जा रही है। पिछले चुनाव के पहले चरण में इस जाटलैंड में जिन आठ सीटों पर मतदान हुआ था, उनमें से भाजपा को छह सीटें हासिल हुई थीं। बहुजन समाज पार्टी ने बिजनौर और सहारनपुर, दो लोकसभा क्षेत्र अपने नाम किया था। तब बसपा और सपा के बीच बुआ-भतीजे की जोड़ी कारगर हुई थी। इन दोनों दलों ने राष्ट्रीय लोकदल को भी समर्थन दिया था किंतु प्रमुख जाट नेता चौधरी अजीत सिंह और उनके पुत्र जयंत चौधरी हार गए थे। दोनों पिता-पुत्र मजफ्फरनगर और बागपत से उम्मीदवार थे। चौधरी अजीत सिंह अब नहीं हैं और जयंत चौधरी ने तब से कई राजनीतिक पैंतरे बदले। फिलहाल वे सपा का साथ छोड़कर भाजपा से हाथ मिला चुके हैं और निश्चित ही वे प्रधानमंत्री के मंच पर दिखाई देंगे। काफी कुछ सोच विचार कर उन्होंने सपा से मिल रही कुछ अधिक सीटों के मुकाबले भाजपा से सिर्फ दो पर समझौता किया है। वे स्वयं चुनाव मैदान में नहीं हैं। ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा ने उन्हें राज्यसभा में बनाए रखने का फैसला किया है। चौधरी की पार्टी बिजनौर और बागपत से भाजपा के सहयोग के साथ मैदान में है।

प्रधानमंत्री की रैली में स्वाभाविक है कि मेरठ के अतिरिक्त जयंत चौधरी के प्रभाव वाले क्षेत्रों के बड़ी संख्या में समर्थक शामिल होंगे। इनमें बिजनौर और बागपत से, जहां से आरएलडी प्रत्याशी हैं, उनके अतिरिक्त मुजफ्फरनर से लेकर कैराना और खतौली से सहारनपुर तक जाट प्रभावित इलाके इस बार क्या फैसला करते हैं, यह देखना होगा। पिछली बार तो उन्होंने जाटों के प्रतीक पिता-पुत्र के हिस्से पराजय ही दी थी। अब सवाल है कि कम होते असर के बावजूद भाजपा जयंत के दल को महत्व क्यों दे रही है। इसे समझने के लिए देखना होगा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर और मुरादाबाद मंडल के साथ मेरठ, अलीगढ़ और आगरा के उन 18 जाटबहुल क्षेत्रों पर भी पार्टी की नजर है, जहां वह बहुत अच्छा नहीं कर सकी थी। इसीलिए मुजफ्फरनगर के संजीव बालियान को मंत्री पद दिया गया, तो मुरादाबाद के भूपेंद्र चौधरी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं। इसके बाद भी चौधरी चरण सिंह के पोते और चौधरी अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी का किसानों, खासकर जाट किसानों में असर बना हुआ है। जयंत के समाजवादी पार्टी के साथ जाने से मुस्लिम-जाट समीकरण को भी ताकत मिल रही थी। अब जबकि जयंत सपा का साथ छोड़ आए, भाजपा ने इस मिथक को तोड़ने की कोशिश की है।

मुस्लिम-जाट एका टूटने के संकेत के साथ प्रधानमंत्री मोदी अपनी मेरठ की रैली से एक और बड़ा संदेश दे सकते हैं। कम लोगों के ध्यान में है कि मेरठ की रैली में मंच पर पार्टी उम्मीदवार अरुण गोविल भी रहेंगे। गोविल ने अपने जमाने के प्रसिद्ध धारावाहिक रामायण में राम का रोल निभाया था। देखा जाए तो इस धारावाहिक के अलावा अरुण गोविल को फिल्म अथवा छोटे परदे पर बहुत जगह नहीं मिली। इस तरह वह लोगों की नजर से अंतर्ध्यान ही रहे किंतु अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद राम का हर प्रतीक महत्वपूर्ण लगने लगा है। भाजपा और उसके नेता नरेन्द्र मोदी इस अवसर को इसकी चर्चा के बिना जाने देंगे, यह मुमकिन नहीं लगता। तो जाट-मुस्लिम गठजोड़ तोड़ने के साथ ही हिंदू मतों का ध्रुवीकरण मेरठ रैली का मूल मकसद होगा और पूरे उत्तर भारत में इस प्रयोग को अमल में लाने की तैयारी हो चुकी है।