Sunday, May 19"खबर जो असर करे"

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दुनिया को समझना होगा ‘माता भूमि, पुत्रोह्म पृथिव्या:’ का निहितार्थ

दुनिया को समझना होगा ‘माता भूमि, पुत्रोह्म पृथिव्या:’ का निहितार्थ

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- कुल भूषण उपमन्यु आज प्लास्टिक, मिट्टी, पानी, और वायु का प्रदूषक बनता जा रहा है। जमीन पर पड़े हुए प्लास्टिक से धूप के कारण अपर्दन से टूटकर सूक्ष्म कण मिट्टी में मिल जाते हैं और मिट्टी के उपजाऊपन को नष्ट करने का काम करते हैं। पानी में मिल कर मछलियों के शरीर में पहुंच कर खाद्य शृंखला का भाग बन कर मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बन जाते हैं। जलाए जाने पर वायु में अनेक विषैली गैसें वायु मंडल में छोड़ते हैं जिससे वैश्विक तापमान वृद्धि के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरे पैदा हो रहे हैं। प्लास्टिक दैनिक जीवन का ऐसा भाग बन गया है कि इससे बचना बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। प्लास्टिक का प्रयोग कम करना, पुनर्चक्रीकरण, और जो बच जाए उसको उत्तम धुआं रहित प्रज्वलन तकनीक से ताप विद्युत बनाने में प्रयोग किया जा सकता है। हालांकि इससे भी थोड़ा गैस उत्सर्जन तो होता है किन्तु जिस तरह शहरी कचरा डंपिंग...
विपक्ष जनभावना को समझने में विफल

विपक्ष जनभावना को समझने में विफल

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- विकास सक्सेना राज्यसभा चुनाव में जमकर हुई क्रॉस वोटिंग के दम पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में दो अतिरिक्त सीट पर विजय हासिल कर ली। नेतृत्व के निर्देशों की अनदेखी करके क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों पर हमेशा की तरह 'बिक जाने' या 'डर जाने' के आरोप लगाए जा रहे हैं लेकिन इस बार की क्रॉस वोटिंग सिर्फ इतने तक सीमित दिखाई नहीं देती। भाजपा और मोदी विरोधी विपक्षी दलों के शीर्ष नेतृत्व ने पिछले कुछ समय में जिस तरह से जनभावना के विपरीत फैसले लिए हैं उनसे इन दलों में तेजी से असंतोष बढ़ा है। खासतौर से अयोध्या में श्रीराम लला के मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह का विपक्षी दलों ने जिस तरह बहिष्कार किया, वह पार्टी के समर्थकों और तमाम नेताओं को रास नहीं आया। तमाम विपक्षी नेता प्रभु राम, सनातन धर्म और संस्कृति के खिलाफ अनर्गल बयान दे रहे थे लेकिन पार्टी का शीर्ष नेतृत्...
गुलाम नबी आजाद के मर्म को समझो भाई

गुलाम नबी आजाद के मर्म को समझो भाई

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- हृदयनारायण दीक्षित गुलाम नबी आजाद ने कहा है कि, 'इस्लाम का जन्म 1500 साल पहले हुआ था। भारत में कोई भी बाहरी नहीं है। हम सभी इसी देश के हैं। भारत के मुसलमान मूल रूप से हिंदू थे, बाद में मतांतरित हो गए।' कांग्रेस का साथ छोड़कर डेमोक्रेटिव प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) बनाने वाले जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद का बयान महत्वपूर्ण है। आजाद का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा है, 'पहले कश्मीर में कोई मुसलमान नहीं था। वहां सभी कश्मीरी पंडित थे। भारत में कोई भी बाहरी नहीं है। हम सभी इस देश के हैं। हम बाहर से नहीं आए हैं। इसी मिट्टी की पैदावार हैं। इसी मिट्टी में खत्म होना है। हिन्दू धर्म प्राचीन है।' आजाद की यह वाकई महत्वपूर्ण और तटस्थ टिप्पणी है, क्योंकि हिन्दू संस्कृति एक है। अनेक रूपों वाली यह संस्कृति सर्वसमावेशी है। अपनी मूल आत्मा में...
सड़क निर्माण में पर्यावरण मित्र समझ जरूरी

सड़क निर्माण में पर्यावरण मित्र समझ जरूरी

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- कुलभूषण उपमन्यु इस साल जुलाई के दूसरे सप्ताह में ब्यास घाटी में आई भयानक बाढ़ ने पूरे प्रदेश को हिला दिया। हजारों करोड़ रुपये की आर्थिक हानि के साथ 100 से ज्यादा निरपराध लोग काल का ग्रास बन गए। आवागमन के साधनों के चौपट हो जाने और आसन्न खतरे की चिंताओं ने जन सामान्य के जीवन को सदमे जैसी स्थिति में ला खड़ा कर दिया। सैकड़ों आशियाने ध्वस्त हो गए। इस विभीषिका को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग उठी। केन्द्रीय सड़क एवं परिवहनमंत्री नितिन गडकरी हिमाचल प्रदेश में हुई तबाही का जायजा लेने ब्यास घाटी के दौरे पर आए। उनसे प्रदेश की जनता को बहुत उम्मीद थी कि वे अवश्य पूरी परिस्थिति का आकलन करने की दिशा में कोई सार्थक कदम उठाने की पहल करेंगे जिससे हिमालय क्षेत्र में सड़क निर्माण में पर्यावरण मित्र समझ का समावेश हो सकेगा ताकि आगे चल कर हिमालयी क्षेत्रों में अवैज्ञानिक रूप से बनाई जा रही सड़कों को उपयुक्त तक...
विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस: समझनी ही होगी प्रकृति की मूक भाषा

विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस: समझनी ही होगी प्रकृति की मूक भाषा

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- योगेश कुमार गोयल प्रदूषित हो रहे पर्यावरण के आज जो भयावह खतरे हमारे सामने आ रहे हैं, उनसे शायद ही कोई अनभिज्ञ हो और हमें यह स्वीकार करने से भी गुरेज नहीं करना चाहिए कि इस तरह की समस्याओं के लिए कहीं न कहीं जिम्मेदार हम स्वयं भी हैं। पेड़-पौधों की अनेक प्रजातियों के अलावा बिगड़ते पर्यावरणीय संतुलन और मौसम चक्र में आते बदलाव के कारण जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियों के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। हमें यह भली-भांति जान लेना चाहिए कि इन प्रजातियों के लुप्त होने का सीधा असर समस्त मानव सभ्यता पर पड़ना अवश्वम्भावी है। सबसे पहले यह जानना बेहद जरूरी है कि प्रकृति आखिर है क्या? प्रकृति के तीन प्रमुख तत्व हैं जल, जंगल और जमीन, जिनके बगैर प्रकृति अधूरी है और यह विडम्बना है प्रकृति के इन तीनों ही तत्वों का इस कदर दोहन किया जा रहा है कि इसका संतुलन डगमगाने लगा है, जिसकी परिणति अक्सर भयावह प्र...
समझने की जरूरत है ‘ऑनलाइन’ धर्मांतरण का ‘गेम’

समझने की जरूरत है ‘ऑनलाइन’ धर्मांतरण का ‘गेम’

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- मृत्युंजय दीक्षित ऑनलाइन गेमिंग ऐप वैसे तो कई प्रकार से समाज के लिए नुकसानदेह है किन्तु कट्टरपंथी इस्लामिक तत्वों द्वारा इनका प्रयोग धर्मांतरण के लिए किया जाना एक बड़े दुश्चक्र के रूप में सामने आया है । इसका खुलासा विस्मय करने वाला है। पुलिस के हत्थे चढ़े मुख्य आरोपित शहनवाज खान उर्फ बद्दो के साथ तौफीक और आर्यन खान से पूछताछ हो रही है। यह पूरा गिरोह है। इसका खुलासा करने में गाजियाबाद जिले के पुलिस अधिकारियों की भूमिका सराहनीय है। इस गिरोह ने गाजियाबाद के राजनगर के एक किशोर को इस गेम की आड़ में मस्जिद में नमाज पढ़ने तक के लिए मजबूर कर दिया। उसे यह घुट्टी पिलाई गई कि इस्लाम दुनिया का सबसे बेहतर धर्म है। इस किशोर ने दो साल पहले बद्दो से कंप्यूटर के कुछ पार्ट खरीदे थे। इस इंटर पास छात्र के ऑनलाइन गेमिंग ऐप से धर्मांतरण के मामले में पुलिस ने जामा मस्जिद कमेटी के सदस्य अब्दुल रहमान उर्फ नन्नी...
द केरला स्टोरीः फिल्म के आंकड़ों से ज्यादा मूल बात को समझने की है

द केरला स्टोरीः फिल्म के आंकड़ों से ज्यादा मूल बात को समझने की है

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- निवेदिता सक्सेना हाल ही में रिलीज हुई फिल्म `द केरला स्टोरी' तथ्यपरख होने के साथ आने वाले भविष्य के लिए एक दस्तक भी है। जो न सिर्फ बेटियों के लिए, वरन हर उस इंसान के लिए जो अब तक अपने जीवन मूल्य के अस्तित्व को न समझ पाया है न ही उसे बताया गया है। एक बालक को कोई अपनी बात मनवाने के लिए झुनझुना पकड़ा दिया जाता है ताकि कुछ समय तक वह भ्रमित रहे और उससे खेलता रहे। वह झुनझुने से निकली आवाज से खुश होता रहे, लेकिन एक उम्र के बाद उसे उस झुनझुने की असलियत पता लगती है, तब वह उसके मायाजाल में नहीं फंसता। ये तो रही बच्चे की बात लेकिन धर्म एवं कर्म के नाम का झुनझुना जिंदगी को पलट देता है। स्थिरं जीवितं लोके ह्यस्थिरे धनयौवने । स्थिराः पुत्रदाराश्च धर्मः कीर्तिर्द्वयं स्थिरम् ॥ इस स्थिर जीवन/संसार में धन, यौवन, पुत्र-पत्नी आदि सबकुछ अस्थिर है। केवल धर्म और कीर्ति ये दो बातें स्थिर हैं। फिलहाल ऐसा भार...
हड़ताल का मनोविज्ञान समझने की जरूरत

हड़ताल का मनोविज्ञान समझने की जरूरत

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- सियाराम पांडेय 'शांत' विरोध-प्रदर्शन, सत्याग्रह, हड़ताल और आंदोलन लोकतंत्र के ऐसे हथियार हैं जो अपनी जिम्मेदारी को भूल बैठे सत्ताधीशों को कुम्भकर्णी नींद से जगाने में अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन हर आंदोलन की अपनी मर्यादा होती है।अपनी आधार भूमि होती है। अपना उद्देश्य होता है। बात-बात पर होने वाले आंदोलन देश का मार्गदर्शन तो करते नहीं, अलबत्ता परेशानी और चिंता का ग्राफ जरूर बढ़ा देते हैं। बिना सिर-पैर के आंदोलनों से वैसे भी किसी का भला नहीं होता। नुकसान अधिकांश जनता का होता है। यातायात जाम में फंसे देश को रोज कितना जान-माल का नुकसान होता है, यह किसी से छिपा नहीं है। किसान आंदोलन के नाम पर जब रेल ट्रैक जाम कर दिए जाते हैं या सरकारी वाहनों को आग के हवाले कर दिया जाता है तो इससे देश की कितनी क्षति होती है, इसे आवेशित आंदोलनकारी नहीं समझ सकते, लेकिन देश को समझना होगा। हड़ताल का अपना मनोविज्ञा...

समझना होगा साक्षरता का महत्व

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- योगेश कुमार गोयल साक्षरता के महत्व के बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 08 सितंबर को विश्वभर में ‘अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस’ मनाया जाता है। दुनिया से अशिक्षा को समाप्त करने के संकल्प के साथ आज 56वां ‘अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस’ मनाया जा रहा है। पहली बार यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) द्वारा 17 नवम्बर 1965 को 8 सितंबर को ही अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाए जाने की घोषणा की गई थी, जिसके बाद प्रथम बार 8 सितंबर 1966 से शिक्षा के प्रति लोगों में जागरुकता बढ़ाने तथा विश्वभर के लोगों का इस ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रतिवर्ष इसी दिन यह दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया। वास्तव में यह संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों का ही प्रमुख घटक है। निरक्षरता को खत्म करने के लिए ईरान के तेहरान में शिक्षा मंत्रियों के विश्व सम्मेलन के दौरान ...