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अस्पताल ऐसा बने जहां लोग रोते हुए आएं तो वापस हंसते हुए जाएं: कोकिला बेन

अस्पताल ऐसा बने जहां लोग रोते हुए आएं तो वापस हंसते हुए जाएं: कोकिला बेन

देश, मध्य प्रदेश
- अभिनेता अमिताभ बच्चन ने किया कोकिलाबेन अस्पताल का उद्घाटन - नई दिल्ली से वर्चुअली शामिल हुए मुख्यमंत्री, शुभारंभ पर दी शुभकामनाएं इंदौर। देश के सबसे स्वच्छतम शहर इंदौर में मंगलवार शाम को सर्वसुविधायुक्त कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल का लोकार्पण किया गया। सदी के महानायक प्रख्यात फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन और उनकी धर्मपत्नी जया बच्चन के अलावा कोकिलाबेन अस्पताल के लोकार्पण कार्यक्रम में अस्पताल के चेयरपर्सन अनिल अंबानी और टीना अंबानी भी मौजूद रहे। कार्यक्रम में कोकिला बेन भी वर्चुअली जुड़ीं और गुजराती में संबोधित किया। उन्होंने कहा कि अस्पताल ऐसा बने, जहां पर लोग अगर रोते हुए आएं तो वापस हंसते हुए जाएं। उद्घाटन के बाद अमिनेता बच्चन ने कहा कि इंदौर आकर मुझे अत्यंत आनंद की अनुभूति हो रही है। यह भारत का सबसे स्वच्छ शहर है। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि इंदौर देश का सबसे स्वस्थ शहर भी...

स्मृति शेष: अलविदा राजू श्रीवास्तव, अब सबको कौन हंसायेगा

अवर्गीकृत
- आर.के. सिन्हा राजू श्रीवास्तव की सेहत को लेकर बीच-बीच में खबरें आने लगीं थीं कि वे कुछ बेहतर हो रहे हैं। उनके स्वास्थ्य में कुछ सुधार हो रहा है। पिछले सप्ताह जब मैं उन्हें देखने एम्स गया था। जब उनकी श्रीमती जी ने आवाज़ लगाई कि `आर. के. भाई साहब आये हैं तो उन्होंने आखें खोलने की असफल चेष्टा भी की थी।' एक उम्मीद बंधने लगी थी कि वे फिर से ठीक होकर देश को अपने चुटीले व्यंग्यों से हंसाने लगेंगे। पर अफसोस कि राजू श्रीवास्तव नहीं रहे। एम्स जैसे प्रख्यात अस्पताल के डॉक्टर भी उन्हें बचा न सके। कानपुर से मुंबई जाकर अपने फिल्मी करियर को बनाने-संवारने गए राजू श्रीवास्तव ने सफलता को पाने से पहले बहुत पापड़ बेले थे। राजू श्रीवास्तव ने स्टैंडअप कॉमेडियन के रूप में अपनी साफ-सुथरी कमेडी से करोड़ों लोगों को आनंद के पल दिये हैं। उनके काम में अश्लीलता नहीं थी। वे बेहद गंभीर किस्म के इंसान थे। साफ है कि कॉम...

स्मृति शेष: हंसते-हंसाते अलविदा कह गए राजू

अवर्गीकृत
- प्रभुनाथ शुक्ल हंसाने वाला ही नहीं रहा तो दुनिया हंसेगी कैसे। राजू श्रीवास्तव लोगों को हंसाते-हंसाते रुला कर चले गए। अस्पताल में 42 दिन के लंबे संघर्ष के बाद उन्होंने जिंदगी को अलविदा कह दिया। राजू का जाना पूरी हंसी की दुनिया का खामोश हो जाना है। एक ऐसे दौर में राजू श्रीवास्तव का चले जाना बेहद पीड़ादायक है, जब लोग डिप्रेशन जैसी बीमारी का शिकार हो रहे हैं। आज दौड़ती-भागती जिंदगी में जीवन में हंसी का कोई ठिकाना ही नहीं है । लोगों के चेहरे पर थकान के सिवाय मुस्कान दिखती ही नहीं। जिंदगी इतनी तेज भाग रही है कि लोगों की हंसती-खेलती दुनिया ही गायब है। ऐसे दौर में राजू डिप्रेशन के मरीजों के लिए भगवान थे। राजू श्रीवास्तव एक ऐसे परिवार से आते हैं जहां साहित्य और कला को खुली सांस मिली। उनके पिता रमेश श्रीवास्तव कवि थे। उन्हें लोग बलई काका के नाम से भी पुकारते थे। राजू श्रीवास्तव उन्हीं बलई काका क...