Saturday, May 18"खबर जो असर करे"

Tag: Indian Philosophy

भारतीय मेधा की उड़ान चंद्रयान अभियान

भारतीय मेधा की उड़ान चंद्रयान अभियान

अवर्गीकृत
- हृदयनारायण दीक्षित परिवार समाज की छोटी इकाई है। परिवार के सभी सदस्य आत्मीय होते हैं। हिन्दू चिंतन में पूरा विश्व एक परिवार है। इस धारणा में परिवार से बड़ी इकाई समाज है। भारतीय दर्शन उदात्त है। इसके बावजूद परिवार से बड़ी इकाई जाति है। जातिभेद भी हैं। वैसे जातियां श्रम विभाजन का परिणाम हैं लेकिन जन्मना होने के कारण वे मजबूत हैं। जातियां सम्मान अपमान का आधार भी बनीं। वे राष्ट्रीय एकता में बाधक है। अनेक समाज सुधारकों ने जातियों की निन्दा की, जाति तोड़क अभियान चलाए। राजनीति के एक धड़े में जातियों को अतिरिक्त महत्व मिला। जाति आधारित राजनीति भी चलती है। जाति अप्राकृतिक वर्ग है। इसे विदा करना और जातिविहीन समरस समाज का निर्माण राष्ट्रीय कर्तव्य है। जाति का उद्भव समाजशास्त्रियों की चुनौती रहा है। डॉ. बीआर आम्बेडकर ने कोलम्बिया विश्वविद्याल में 9 मई, 1916 को नृविज्ञान विषयक एक गोष्ठी में जाति की उत्प...
दुनिया की सभी समस्याओं का समाधान भारतीय दर्शन में: मुख्यमंत्री चौहान

दुनिया की सभी समस्याओं का समाधान भारतीय दर्शन में: मुख्यमंत्री चौहान

देश, मध्य प्रदेश
- आद्य जगतगुरू रामानंदाचार्य जी की 723वीं जयंती कार्यक्रम में शामिल हुए मुख्यमंत्री भोपाल (Bhopal)। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) ने कहा कि विगत दिवस भोपाल में हुई जी-20 के अंतर्गत थिंक 20 बैठक (Think 20 meeting under G-20) में विदेशों से आए प्रतिनिधियों ने भी माना कि दुनिया की सारी समस्या का समाधान (solve all problems) हमारे भारतीय दर्शन (Indian philosophy) में है। हम वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा एवं विश्व के कल्याण का भाव रखने वाले लोग हैं। मुख्यमंत्री चौहान बुधवार शाम को जबलपुर में पूज्य आद्य रामानंदाचार्य जी की 723 वीं जयंती एवं पूज्य जगतगुरू सुखानंद द्वाराचार्य स्वामी राघव देवाचार्य जी के जन्मोत्सव कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन में प्रकृति, पशु-प्राणियों, नदियों एवं पहाड़ों की पूजा करने का चिंतन भी शामिल है। इन्हीं...

भारतीय दर्शन का उद्देश्य लोकमंगल

अवर्गीकृत
- ह्रदय नारायण दीक्षित भारतीय दर्शन का उद्देश्य लोकमंगल है। कुछ विद्वान भारतीय चिंतन पर भाववादी होने का आरोप लगाते हैं। वे ऋग्वेद में वर्णित कृषि व्यवस्था पर ध्यान नहीं देते। अन्न का सम्मानजनक उल्लेख ऋग्वेद में है, अथर्ववेद में है। उपनिषद् दर्शन ग्रन्थ हैं। उपनिषदों में अन्न की महिमा है। तैत्तिरीय उपनिषद् में कहते हैं, 'अन्नं बहुकुर्वीत - खूब अन्न पैदा करो।' निर्देश है, 'अन्नं न निन्दियात - अन्न की निंदा न करे।' छान्दोग्य उपनिषद् में व्यथित नारद को सनत् कुमार ने बताया, 'वाणी नाम धारण करती है, वाणी नाम से बड़ी है, वाणी से मन बड़ा है। संकल्प मन से बड़ा है। चित्त संकल्प से बड़ा है। ध्यान चित्त से बड़ा है। ध्यान से विज्ञान बड़ा है। विज्ञान से बल बड़ा है। लेकिन अन्न, बल से बड़ा है।' अन्न की महिमा बताते हैं, 'दस दिन भोजन न करें। जीवित भले ही रहें तो भी वह अद्रष्टा, अश्रोता, अबोद्धा अकर्ता अविज्ञाता हो ...