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भारतीय दर्शन का उद्देश्य लोकमंगल

अवर्गीकृत
- ह्रदय नारायण दीक्षित भारतीय दर्शन का उद्देश्य लोकमंगल है। कुछ विद्वान भारतीय चिंतन पर भाववादी होने का आरोप लगाते हैं। वे ऋग्वेद में वर्णित कृषि व्यवस्था पर ध्यान नहीं देते। अन्न का सम्मानजनक उल्लेख ऋग्वेद में है, अथर्ववेद में है। उपनिषद् दर्शन ग्रन्थ हैं। उपनिषदों में अन्न की महिमा है। तैत्तिरीय उपनिषद् में कहते हैं, 'अन्नं बहुकुर्वीत - खूब अन्न पैदा करो।' निर्देश है, 'अन्नं न निन्दियात - अन्न की निंदा न करे।' छान्दोग्य उपनिषद् में व्यथित नारद को सनत् कुमार ने बताया, 'वाणी नाम धारण करती है, वाणी नाम से बड़ी है, वाणी से मन बड़ा है। संकल्प मन से बड़ा है। चित्त संकल्प से बड़ा है। ध्यान चित्त से बड़ा है। ध्यान से विज्ञान बड़ा है। विज्ञान से बल बड़ा है। लेकिन अन्न, बल से बड़ा है।' अन्न की महिमा बताते हैं, 'दस दिन भोजन न करें। जीवित भले ही रहें तो भी वह अद्रष्टा, अश्रोता, अबोद्धा अकर्ता अविज्ञाता हो ...