Wednesday, April 30"खबर जो असर करे"

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रक्षाबंधन पर भी चढ़ा आधुनिकता का रंग

रक्षाबंधन पर भी चढ़ा आधुनिकता का रंग

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- योगेश कुमार गोयल भाई द्वारा बहन की रक्षा का वचन देने के प्रतीक के रूप में मनाए जाने वाले त्यौहार रक्षाबंधन के मायने वर्तमान युग में बहुत बदल गए हैं। रिश्तों के इस पर्व पर अब भावनाओं से ज्यादा राखी की कीमत देखी जाने लगी है। बदले जमाने के साथ रक्षाबंधन मनाने के तौर-तरीकों में तो बदलाव आया ही है, साथ ही कच्चे धागों के रूप में भाई की कलाई पर बांधा जाने वाला भाई-बहन के रिश्ते का यह बंधन अब कच्चे धागों के स्थान पर सोने-चांदी की जंजीरों का रूप ले चुका है। भाईबहन के अटूट प्यार के इस पर्व पर अब आधुनिकता का रंग चढ़ चुका है। समय बदलने के साथ-साथ राखियों का अंदाज पूरी तरह बदल गया है। हर वर्ष रक्षाबंधन पर अब बाजार में सैंकड़ों तरह की नई राखियां आती हैं। लोगों में नए-नए डिजाइनों वाली महंगी राखियों के प्रति दीवानगी इस कदर बढ़ गई है कि अब राखी बनाने वाले बड़े-बड़े निर्माताओं ने तो बाकायदा राखियों के नए-नए ड...
अपनेपन का प्रतीक है रक्षाबंधन का पर्व

अपनेपन का प्रतीक है रक्षाबंधन का पर्व

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- रमेश सर्राफ धमोरा भारत में रक्षाबंधन के पवित्र पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इसे रिश्तों में मिठास, विश्वास और प्रेम बढ़ाने वाला पर्व माना गया है। इस दिन बहनें, भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और उसकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। इस दौरान भाई भी अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है और क्षमता के अनुसार उपहार देता है। रक्षाबन्धन का पर्व भाई-बहिन के स्नेह का प्रतीक देश का एक प्रमुख त्योहार है। रक्षाबन्धन पर्व में रक्षासूत्र यानी राखी का सबसे अधिक महत्व है। श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी पर्व भी कहते हैं। इस दिन ब्राह्मण गुरु द्वारा भी राखी बांधी जाती है। हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बांधते समय पण्डित संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं। जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। यह श्लोक रक्षा...
जम्मू-कश्मीर लिखेगा एक और इतिहास

जम्मू-कश्मीर लिखेगा एक और इतिहास

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- प्रदीप मिश्र आजादी और विभाजन के बाद ऐतिहासिक विवाद और विचार-विमर्श का केंद्र रहे जम्मू-कश्मीर फिर नई इबारत लिखने जा रहा है। पांच अगस्त 2019 को स्वायत्तशासी राज्य से केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए जम्मू-कश्मीर का भूगोल लद्दाख के अलग होने के कारण पहले ही बदल चुका है। अरसे बाद तीन चरणों में विधानसभा चुनाव तय हो गया है। 2014 के बाद होने जा रहा नए जम्मू-कश्मीर का यह विधानसभा चुनाव इतिहास का हिस्सा होगा। इस साल जून से आतंकवादियों के आए दिन हमलों और सुरक्षाकर्मियों की शहादत के बीच सुप्रीम कोर्ट के प्रति सम्मान जताने के चुनाव आयोग के फैसले से अवाम को स्थानीय स्तर पर नुमाइंदे मिल जाएंगे। इससे उनकी अपने जनप्रतिनिधि चुनने के बाद उनकी समस्याओं पर सुनवाई और समाधान नजदीक ही नहीं, तेजी से भी होने की उम्मीद बढ़ गई है। 87.09 लाख मतदाताओं वाले केंद्र शासित प्रदेश में सभी दलों के लिए पूर्ण राज्य का मुद्दा सब...
बांग्लादेश के हिंदू आखिरकार कहां शरण लें?

बांग्लादेश के हिंदू आखिरकार कहां शरण लें?

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- हृदयनारायण दीक्षित बांग्लादेश में हिंदू चुन-चुन कर मारे जा रहे हैं। कत्लेआम जारी है। हिंदू महिलाओं के साथ बर्बरता के वीभत्स तरीके अपनाए जा रहे हैं। महिलाओं पर अत्याचार के चित्र कठोर से कठोर व्यक्ति को विचलित करने वाले हैं। बांग्लादेशी हिंदुओं का कोई भी काम न तो सेना के खिलाफ है और न ही सेना की कठपुतली कथित सरकार के खिलाफ।अंतरराष्ट्रीय जिज्ञासा है कि इस रक्तपात की वजह क्या है? बांग्लादेश और पाकिस्तान में हिंदू आबादी का प्रतिशत पहले ही घट रहा है। हिंदू आबादी का प्रतिशत घटने के कारण क्या हैं? दोनों देशों में हिंदू आबादी की संख्या अत्याचार, उत्पीड़न और हिंसा से घटी है। जोर जबरदस्ती का मतांतरण भी प्रमुख कारण है। मिशनरी लोगों से सम्बंधित साधारण घटनाएं भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनती हैं। धर्मांतरण करने वाली शक्तियां अपना गैरकानूनी काम करती रहती हैं। उनके गलत काम का विरोध भी सारी दु...
तय मानिए, ‘भारत’ भारत ही रहेगा

तय मानिए, ‘भारत’ भारत ही रहेगा

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- राकेश दुबे हमारे देश में 'तिरंगा यात्रा' की धूम मची है। राष्ट्रध्वज 'तिरंगा' अभी से घर-घर और हाथों में लहरा रहा है। दूसरी ओर कुछ 'देशद्रोही' आवाजें उठ रही हैं कि भारत में भी बांग्लादेश जैसे हालात पैदा हो सकते हैं! आंदोलन और बगावत की नौबत आ सकती है! मणिशंकर अय्यर और सलमान खुर्शीद सरीखे नेताओं ने दोनों देशों की परिस्थितियों की तुलना की है कि दोनों की राय में देश में युवा असंतोष, आक्रोश चरम पर हैं। उनके अनुसार बेरोजगारी बहुत है। तीन दिन के बाद हम देश का 'स्वतंत्रता दिवस' मनाएंगे। आजादी को 77 साल बीत जाएंगे, इस विरोधाभासी तुलना के बाद भारत का लोकतंत्र और उसकी संप्रभुता जन्म से यथावत है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना 'तानाशाही फितरत' की थीं। उन्होंने विपक्ष का पूरी तरह दमन कर दिया था। भारत में भी कुछ लोग प्रधानमंत्री मोदी को 'तानाशाह' करार देते हैं। आरोप लगाते है की उन्होंने...
ढाई हजार साल में 24 विभाजन हुए भारत के

ढाई हजार साल में 24 विभाजन हुए भारत के

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- रमेश शर्मा संसार में भारत अकेला ऐसा देश है जिसका इतिहास यदि सर्वोच्च गौरव से भरा है तो सर्वाधिक दर्द से भी। यह गौरव है पूरे संसार को शब्द, गणना और ज्ञान विज्ञान से अवगत कराने का ।... और दर्द है निरंतर आक्रमणों और अपनी धरती के हुये विभाजन का। बीते ढाई हजार वर्षों में 24 और 1873 से 1947 के बीच केवल सत्तर सालों में सात विभाजन हुए। अंतिम विभाजन करोड़ों लोगों के बेघर होने और लाखों निर्दोष नागरिकों की निर्मम हत्या के साथ हुआ। आज स्वतंत्र भारत का जो स्वरूप और सीमा हम देख रहे हैं उसका भूगोल अतीत के गौरव का 10 प्रतिशत भी नहीं है । वैदिक संस्कृति से आलोकित इस भू-भाग का नाम कभी जंबूद्वीप था । इसका स्मरण आज भी पूजन संकल्प में होता है "जंबूद्वीपे भरत खंडे आर्यावर्ते.. " पर यह अब केवल इतिहास की पुस्तकों तक ही सिमिट गया । समय के साथ भारत कभी आर्यावर्त है तो कभी भारतवर्ष भी रहा । हिमालय इसके मध्य में...
शिवजी का डमरू और तीनों लोक

शिवजी का डमरू और तीनों लोक

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- हृदयनारायण दीक्षित भारत में सावन का महीना शिव उपासना का जलरस भरा मुहूर्त है। शिव सोम प्रेमी हैं। सोम प्रकृति की सृजन शक्ति है। सृजन की यही शक्ति शिव ललाट की दीप्ति है। शिव के माथे पर सोम चन्द्र हैं। ऋग्वेद के ऋषियों के दुलारे सोम वनस्पतियों के राजा हैं। सोम प्रसन्न होते हैं। वनस्पतियां-औषधियां उगती हैं। खिलती हैं। खिलखिलाती हैं। भारतीय सप्ताह में एक दिन सोम का। पहला दिन रविवार रवि का तो दूसरा दिन सोमवार सोम का। शिवभक्तों को सोमवार प्रीतिकर है। शिव भी सोमवार का दिन भक्तों के लिए ही खाली रखते होंगे। काशी बहुत जाता हूं। काशी मंदिर में शिव उपासना की मूर्ति है। शिव दर्शन कई बार हुआ। मैंने समूची वाराणसी को सोम शिव पाया। हर-हर महादेव की गूंज व लोक उल्लास। शिव भोले शंकर हैं। औघड़दानी हैं। गण समूहों के मित्र हैं। गणों के साथ स्वयं भी नृत्य करते हैं। वे रूद्र शिव एशिया के बड़े भूभाग में प्राची...
अब बांग्लादेश से कौन करेगा द्विपक्षीय व्यापार

अब बांग्लादेश से कौन करेगा द्विपक्षीय व्यापार

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- योगेश कुमार सोनी बांग्लादेश में जो कुछ हुआ, उसका बड़ा खामियाजा उसे भुगतना पड़ सकता है। सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था में सुधार की मांग को लेकर हुए इस आंदोलन की परिणति शेख हसीना की निर्वाचित सरकार के पतन के रूप में हुई है। यही नहीं शेख हसीना को जान बचाकर बांग्लादेश छोड़कर भागना पड़ा। इस सारे घटनाक्रम की पृष्ठभूमि को समझने के लिए कुछ पीछे लौटना होगा। बांग्लादेश को 1971 में स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में चिह्नत किया गया। 1972 में उसे बतौर देश मान्यता मिली। 1972 में तत्कालीन सरकार ने मुक्ति संग्राम में हिस्सा लेने वाले स्वतंत्रता सेनानियों और उनके वंशजों को सरकारी नौकरियों में 30 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया, लेकिन इसका लगातार विरोध हुआ। वर्ष 2018 में सरकार ने इस व्यवस्था को खत्म कर दिया। इस साल जून में हाई कोर्ट के फैसले ने इस आरक्षण प्रणाली को खत्म करने के फैसले को गैरकान...
बांग्लादेशः भारत के लिए रणनीतिक चुनौती

बांग्लादेशः भारत के लिए रणनीतिक चुनौती

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- डॉ. सत्यवान सौरभ बांग्लादेश में हाल ही में हुई राजनीतिक उथल-पुथल ने भारत की क्षेत्रीय कूटनीति के लिए नई चुनौतियां और जटिलताएं ला दी हैं। नागरिक अशांति से जूझ रहे बांग्लादेश के घटनाक्रम से भारत खुद को एक ऐसे चौराहे पर खड़ा पाता है, जिससे उसे अपने कूटनीतिक रुख का पुनर्मूल्यांकन करने की जरूरत है। ढाका के साथ राजनयिक संबंधों में भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियां देखें तो वह विकट हैं। प्रधानमंत्री शेख हसीना के कार्यकाल के अचानक समाप्त होने से ढाका में अप्रत्याशित राजनीति बदलाव तो तय था पर अब नीतिगत बदलाव भी होंगे। इससे द्विपक्षीय पहल प्रभावित हो सकती हैं। शेख हसीना सरकार के विरोध प्रदर्शनों में जमात-ए-इस्लामी जैसे इस्लामी समूहों की भागीदारी संभावित रूप से बांग्लादेशी राजनीति के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बदल सकती है, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है और कट्टरपंथ के खिलाफ भारत के प्र...