Friday, April 26"खबर जो असर करे"

गौरक्षपीठ, योगी और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

– दिलीप अग्निहोत्री

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को संन्यास और राष्ट्रसेवा का भाव गौरक्षपीठ से विरासत में मिला है। इस वैचारिक और ऐतिहासिक पीठ का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के जागरण में उल्लेखनीय योगदान है। पीठाधीश्वर के रूप में योगी आदित्यनाथ इसका सतत संवर्धन कर रहे हैं। यही नहीं, मुख्यमंत्री पद के संवैधानिक दायित्व का निर्वाह भी वह इसी भाव से कर रहे हैं। यही कारण है कि प्रदेश में संस्कृति और विकास के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य हो रहे हैं। गौरक्षपीठ करीब दो दर्जन शिक्षण संस्थानों का संचालन करती है। इन सभी में ज्ञान-विज्ञान के साथ ही भारतीय संस्कृति के प्रति स्वाभिमान की प्रेरणा दी जाती हैं।

योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में गौरक्षपीठ सामाजिक सेवा और जन जागृति के कार्यों का विस्तार दे रही है। संविधान की परिधि में संचालित यह प्रकल्प आमजन के जीवन को सरल बना रहे हैं। इसका निहितार्थ है कि संविधान निर्माता भारत के समग्र विकास चाहते थे। पूर्ववर्ती सरकारों ने समाजवाद की राजनीति के नाम पर भेदभाव किया। वोट बैंक सियासत को अहमियत दी। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से परहेज किया। प्रदेश को चौपट कर दिया। योगी आदित्यनाथ केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार की मदद से सुख-सुविधाओं से वंचित लोगों के जीवन में नई रोशनी ला रहे हैं। दोनों सरकारें सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास की भावना से कार्य कर रहीं हैं।

प्रदेश और देश में राष्ट्रीय स्वाभिमान के जागरण से विपक्ष परेशान है। उत्तर प्रदेश के लोग अब विपक्ष की परम्परागत राजनीति को समझने लगे हैं। इसीलिए परिवारवाद अब हर मोर्चे पर मात खा रहा है। इन पार्टियों के राज में लोग अयोध्या में श्रीराम मन्दिर और काशी में भव्य श्री विश्वनाथ धाम निर्माण की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। मगर अब यह हो रहा है। यही नहीं सदियों पुरानी समस्याओं का शांतिपूर्ण समाधान हो रहा है। विकास कार्यों के भी कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं। भारतीय संस्कृति और परिवेश के अनुरूप शिक्षा नीति से नई उम्मीद जगी है।

ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी की तिरपनवीं और ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ जी की आठवीं पुण्यतिथि आयोजित साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह में योगी आदित्यानाथ गौरक्षपीठ की संस्कृति और सेवा की महान विरासत का उल्लेख कर चुके हैं। दुनिया यह जानती है कि गौरक्षपीठ के इन पूज्य आचार्यद्वय ने धर्म, समाज और राष्ट्र की समस्याओं से पलायन न करने का आदर्श स्थापित किया है। योगी कहते हैं कि उनकी साधना और सिद्धि प्रेरणादायक है। उन्होंने गोरक्षपीठ को मात्र पूजा पद्धति और साधनास्थली तक सीमित नहीं रखा। बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और सेवा के विभिन्न आयामों से जोड़कर लोक कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। गौरक्षपीठ की परंपरा सनातन धर्म की महत्वपूर्ण कड़ी है। आश्रम पद्धति और समाज,देश और धर्म के प्रति दायित्व मार्गदर्शन इस पीठ ने किया है।

योगी आदित्यनाथ बार-बार कहते हैं कि भारतीय संस्कृति के आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः के सूत्र वाक्य को आत्मसात करते हुए उसके श्रेष्ठ अभ्यास को शासकीय संस्थानों में लागू किया जाना चाहिए। वह मनुष्य के विकास में शिक्षा को जरूरी हिस्सा मानते हैं। उनका स्कूल चलो अभियान इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। इस अभियान का करीब डेढ़ लाख स्कूलों में सफल क्रियान्वयन हुआ है। वह चाहते हैं कि हर व्यक्ति निरोगी रहे। इसलिए पूरे प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं का जाल फैलाया जा रहा है। सिद्धार्थ नगर में नौ जिलों में एक साथ नए मेडिकल कॉलेजों का लोकार्पण कर वह अपनी दूरदृष्टि से नौकरशाही को चेता चुके हैं। उनका सपना है कि उत्तर प्रदेश के सभी जनपदों में जल्द मेडिकल कॉलेज बनकर तैयार हों। इस योजना को कोरोना कालखंड में भी तेजी से क्रियान्वित किया गया। आज उत्तर प्रदेश में मेडिकल कॉलेज की संख्या 48 हो चुकी 13 पर तेजी से काम चल रहा है। पांच वर्ष पहले तक उत्तर प्रदेश में मात्र 12 मेडिकल कालेज थे।

पूर्वी उत्तर प्रदेश में चार दशकों के दौरान इंसेफेलाइटिस बीमारी से प्रतिवर्ष डेढ़ हजार बच्चे दम तोड़ देते थे। चालीस साल में पचास हजार मौतें हुईं। योगी सरकार ने सबसे पहले इस पर काम किया। इनसब का परिणाम यह है कि इंसेफलाइटिस से होने वाली मौतें अब शून्य की तरफ हैं। स्पष्ट है कि गौरक्षपीठ ने शिक्षा, स्वास्थ्य और सेवा के विभिन्न आयामों से जोड़कर लोक कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। यह भावना आज उत्तर प्रदेश के विकास में परिलक्षित हो रही है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)